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शब्दयोग सत्संग
१९ जनवरी, २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे,
मेरा राँझण माही मक्का,
नी मैं कमली आँ।
मैं ते मंग राँझे दी होई आँ, मेरा बाबल करदा धक्का,
नी मैं कमली आँ।
हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे, मेरे घर विच्च नौ सौ मक्का,
नी मैं कमली आँ।
विच्चे हाजी विच्चे गाज़ी, विच्चे चोर उचक्का,
नी मैं कमली आँ।
हाजी लोक मक्के नूँ जान्दे, असाँ जाणा तख़त हज़ारे,
नी मैं कमली आँ।
जित वल्ल यार उते वल्ल काअबा, भावें फोल किताबाँ चारे,
नी मैं कमली आँ।
~ संत बुल्ले शाह
प्रसंग:
मेरे घर विच्च नौ सौ मक्का संत बुल्लेशाह का इस पंक्ति से क्या आशय है?
घर को मंदिर कैसे बनाए?
संत बुल्लेशाह मक्का, मंदिर, मस्जिद आदि जाने को मना क्यों कर रहे है?
संगीत: मिलिंद दाते